केवल भाग्य से कुछ नहीं होता, पुरुषार्थ तो करना ही पड़ता है । बिना पुरुषार्थ के जीवन में कुछ नहीं मिलता :---
"यथैकेन न हस्तेन तालिका सम्प्रपद्यते ।
तथोद्यमपरित्यक्तं न फलं कर्मणः स्मृतम् ।।"
(पञ्चतन्त्रम् २/१३५)
केवल एक ही हाथ से ताली नहीं बजती है, उसी प्रकार उद्यम अर्थात् परिश्रम के बिना केवल भाग्य से ही मनुष्य को कर्म का फल नहीं मिलता ।