बुधवार, 12 अगस्त 2020

भाग्य और पुरुषार्थ


"दैवे च मानुषे चैव संयुक्तं लोककारणम्"
(महाभारत, उद्योगपर्व ७७/४)



संसार में समान रूप से दैव अर्थात् भाग्य और पुरुषार्थ दोनों पर जीवन निर्भर करता है ।

योगाचार्य डॉ. प्रवीण कुमार शास्त्री

मंगलवार, 23 जून 2020

कर्म करो


केवल भाग्य से कुछ नहीं होता, पुरुषार्थ तो करना ही पड़ता है । बिना पुरुषार्थ के जीवन में कुछ नहीं मिलता :---

"यथैकेन न हस्तेन तालिका सम्प्रपद्यते ।
तथोद्यमपरित्यक्तं न फलं कर्मणः स्मृतम् ।।"
(पञ्चतन्त्रम् २/१३५)

केवल एक ही हाथ से ताली नहीं बजती है, उसी प्रकार उद्यम अर्थात् परिश्रम के बिना केवल भाग्य से ही मनुष्य को कर्म का फल नहीं मिलता ।