सोमवार, 26 सितंबर 2016

कर्म कुरुत

!!!---: कर्म कुरुत :---!!!
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"कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो में सव्य आहितः ।" (अथर्ववेदः ७-५०-८)

अर्थात् मेरे दाए हाथ में कर्म है और बाएं हाथ में विजय ।

मम दक्षिणहस्ते क्रियाशीलता विद्यते, मम वामहस्ते जयः विद्यते ।

अलसस्य कुतो जयः ? कार्यं करणीयम्, उत्साहेन कार्यं कर्तव्यम् । फलस्य प्रतीक्षायाम् आतङ्केन कार्यं न कर्तव्यम् । 'निष्कपटभावेन यदि कार्यं क्रियेत तर्हि जयः निश्चितः एव । तत्र न कोSपि संशयः । अयम् आशावादः उपरितने वाक्ये परिदृश्यते ।

कार्यस्य फलं भवति अनेकधा । किन्तु अद्यत्वे वयम् इदं फलं धनरूपेणैव अत्यल्पे समये अधिकप्रमाणेन प्राप्तुम् इच्छामः !! अनया प्रतीक्षया कृतं कर्म न कार्यं, न क्रियाशीलता ! इदं द्यूतम् !!! कार्यस्य फलं ज्ञानं स्यात्, अनुभवः स्यात् । जनसम्पर्कः, आरोग्यं वा स्यात् । गौरवादराः स्युः । सर्वस्य अपेक्षया अधिकतमः आत्मविश्वासः आत्मतृप्तिः स्यात् !!!!

वेद की सदैव आज्ञा है कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा, अकर्मा बनकर नहीं---कुर्वन्नेवेह जिजीविषेच्छतुम् ।

कर्म न करने वाले को कठोर शब्दों में वेद निन्दा करता है--अकर्मा दस्युः । कर्म न करने वाला चोर और दस्यु है । जो कर्म नहीं करेंगा, वह अपने पेट भरने के लिए चोरी ही करेगा । ऐसे लोग समाज के शत्रु होते हैं ।

जो व्यक्ति कर्म करेगा, उसे सफलता अवश्य मिलेगी । इसीलिए कहा कि मेरे एक हाथ में कर्म है तो दूसरे हाथ में सफलता अर्थात् जय ।

वेद की इस आज्ञा का लोगों ने उल्लंघन किया । लोगों ने कर्म को छोड़ कर ग्रहों फलित ज्योतिष आदि पर आश्रय पाया ।

परिणाम : कर्महीनता , भाग्य के भरोसे रह आक्रान्ताओं को मुह तोड़ जवाब न देना
, धन धान्य का व्यय , मनोबल की कमी और मानसिक दरिद्रता ।

मनीषचन्द्र पाण्डेय---

"करो सब श्रम से सच्चा प्यार
करो सब श्रम की जय-जयकार।
कर्म में रहते अनवरत निरत
क्रिया में दक्ष दाहिना हाथ।
विजय का वरण करे कर वाम
सदा सोल्लास गर्व के साथ। मिले यश धन-सम्पत्ति अपार।।
मिले गौ, अश्व, भूमि, धन-खान
स्वर्ण से रहे भरा भण्डार।
मिले श्रम से अर्जित सम्पत्ति
करे सोना श्रम का श्रृंगार।
बहें वैभव की अक्षय धार।।
मेरे दाएँ हाथ में कर्म, बाएँ हाथ में विजय है। इन दोनों द्वारा हम गौ, अश्व, धन, भूमि एवं स्वर्ण आदि पाने में सफल हों।"

- डा० देवी सहाय पाण्डेय
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